Saturday, July 13, 2019

बच्चों की फुलवारी

                                                                रामू की कल्पना

रामू एक स्टेशन पर रहा करता था।




एक दिन एक व्यक्ति रेल से एक गुड़ का डब्बा लेकर उतरा और रामू से पूछा -
" सुनो इस डब्बे को शहर ले चलोगे?"


रामू ने कहा - "हाँ साहब।"
उसने कहा -"दो पैसे मिलेंगे।"
रामू ने कहा- "दो ही देना।"
उस व्यक्ति ने रामू के सिर पर डब्बा रखवा कर आगे-आगे स्वयं और पीछे-पीछे रामू चला।



अब रामू की मनसूबेबाजी देखिए। रामू सोचता है-
"इस डब्बे को शहर मे रखने से मुझे दो पैसे मिलेंगे। उन दो पैसों की एक मुर्गी लूँगा।


जब मुर्गी के अंडे-बच्चे होंगे, तो उन्हे बेचकर गाय लूँगा।
जब गाय के बछड़े होंगे, तो उन्हें बेच एक भैंस लूँगा।



 जब भैंस के बच्चे होंगे, तो उन्हे बेचकर ब्याह करूंगा।
 फिर मेरे भी बाल-बच्चे होगें, और वे बच्चे मुझसे कहेंगे कि बापू हमको फलाँ चीज ले दो , हम कहेंगे-"धत् बदमाश।"
इस शब्द के जोर से कहने से सिर पर रखा डब्बा गिर गया और गिरकर फूट गया।


यह देख उस व्यक्ति ने कहा -"अरे तूने यह क्या किया; डब्बा क्यों फोड़ दिया?"
रामू ने कहा " अजी साहब, आपको तो डब्बे की पडी है, यहाँँ तो बसा-बसाया घर ही उजड़ गया।"
इस पर उस व्यक्ति को बहुत गुस्सा आया उसने रामू की बहुत पिटाई की और उसे पैसे भी नहीं दिए। इस तरह रामू को व्यर्थ की कल्पना करने की वजह से मार भी खानी पडी और पैसों से भी हाथ धोना पड़ा 

शिक्षा   : बच्चों! हमें व्यर्थ की कल्पनाओं से बचना चाहिए। कल्पनाएँ मनुष्य को मानसिक रोगी बनाती है। हमें यथार्थ की दुनिया मे जीना चाहिए।



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